फंड में निवेश करने के लिए सामान्यतः सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी विकल्प को पसंद किया जाता है। माना जाता है कि एसआईपी फंड में निवेश करने का सुरक्षित तरीका है। लेकिन हमेशा यह हो जरूरी नहीं। म्यूचुअल फंड कई तरह के निवेश के विकल्प होते हैं, इसमें अलग-अलग तरह के एसेट क्लास, टैक्स बेनिफिट, रिटर्न और जोखिम में अंतर होते हैं। सिप में एक बार में बड़ा अमाउंट निवेश कर सकते हैं, इसके अलावा सिप के जरिए छोटा अमाउंट भी नियमित अंतराल में निवेश कर सकते हैं। जो निवेशक धीरे-धीरे लंबी अवधि में फंड जनरेट करना चाहते हैं, वे एसआईपी में निवेश करना पसंद करते हैं। लेकिन एसआईपी के जरिए निवेश हर बार सही नहीं होता है। अगर एसआईपी के जरिए निवेश का सोच रहे हैं तो कुछ स्थितियों में इससे बचना चाहिए।
Pension India Consumption FundICICI Prudential Life
Rating
20.5%
-
15.5%
View Plan
Multi Cap FundTata AIA Life
Rating
25.72%
22.72%
20.53%
View Plan
Accelerator Mid-Cap Fund IIBajaj Life
Rating
20.41%
14.23%
14.32%
View Plan
MultiplierBirla Sun Life
Rating
22.49%
16.63%
15.42%
View Plan
Pension Mid Cap FundPNB MetLife
Rating
34.5%
-
18.41%
View Plan
Equity II FundCanara HSBC Life
Rating
15.82%
11.93%
10.65%
View Plan
US Equity FundStar Union Dai-ichi Life
Rating
14.69%
-
13.87%
View Plan
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Last updated: Sep 2025
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Returns
Fund Name
3 Years
5 Years
10 Years
Active Fund QUANT
23.92%
31.48%
21.87%
Flexi Cap Fund PARAG PARIKH
20.69%
26.41%
19.28%
Large and Mid-Cap Fund EDELWEISS
22.34%
24.29%
17.94%
Equity Opportunities Fund KOTAK
24.64%
25.01%
19.45%
Large and Midcap Fund MIRAE ASSET
19.74%
24.32%
22.50%
Flexi Cap Fund PGIM INDIA
14.75%
23.39%
-
Flexi Cap Fund DSP
18.41%
22.33%
16.91%
Emerging Equities Fund CANARA ROBECO
20.05%
21.80%
15.92%
Focused fund SUNDARAM
18.27%
18.22%
16.55%
Last updated: August 2025
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जब वित्तीय लक्ष्य तक पहुंचने वाले हो
सिप के जरिए निवेश कर छोटी अवधि में होने वाले बाजार के उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करना है। निवेश लंबी अवधि के लिए होते हैं, ताकि छोटी अवधि में उतार-चढ़ाव को कम किया जा सके। लंबी अवधि के लिए निवेश करना है तो वित्तीय लक्ष्य प्राप्त करने के लिए नुकसान से बचने के लिए फंड को कम रिस्क वाली जगहों पर निवेश करना जरूरी हो जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि अगर बाजार में तेजी है तब भी लालच में न आकर फंड को कम रिस्क वाली जगहों में निवेश करना चाहिए।
जब एक बड़े अमाउंट के लिए निवेश करना हो
अगर एक बड़े अमाउंट के साथ निवेश करना है तब हर महीने एसआईपी के ज़रिए निवेश करना, सही तरीका नहीं है। उदाहरण के तौर पर आपके पास 10 लाख रुपये हैं और सिप के जरिए हर महीने 5000 रुपये इक्विटी फंड में निवेश करने की योजना बना रहे हैं, तब ऐसी स्थिति में अपने अमाउंट के एक बड़े हिस्से पर रिटर्न हासिल करने से चूक जाएंगे। इसके बजाय दूसरा तरीका अपनाया जा सकता है, अगर पूरे फंड को व्यवस्थित तरीके से निवेश करने की योजना बनाई जाए, जैसे कि 20 महीने के लिए 50,000 रुपये प्रति माह, तो यह बेहतर तरीका होगा।
म्यूचुअल फंड स्कीम अच्छा रिटर्न न दे तो
जब म्यूचुअल फंड में निवेश करना हो तो म्यूचुअल फंड स्कीम के परफॉर्मेंस को ट्रैक करना अहम है। अगर नुकसान में चल रहे म्यूचुअल फंड में निवेश करना जारी रखा जाए तो नुकसान ही होगा। आगे के नुकसान से बचने और अपने पोर्टफोलियो को अपडेट करने का सबसे अच्छा तरीका है कि नुकसान में चल रहे सिप को तुरंत रोक देना चाहिए। इसलिए समय-समय पर पोर्टफोलियो को अपडेट जरूरी करें।
सिप के रिस्क को कम किया जा सकता है, बशर्ते सही फंड चुना हो। सिप की कुछ सीमाएं होती हैं जिसे निवेश के पहले ध्यान में रखना चाहिए। हो सकता है कि कोई सिप लॉन्ग टर्म के लिए फायदेमंद हो लेकिन शॉर्ट टर्म में अच्छा रिटर्न न दें।
छोटी अवधि के लिए एसआईपी सही है?
एक बात का ध्यान रखें, सिप के जरिए जितनी धनराशि का निवेश किया जाए, जरूरी नहीं कि उस हिसाब से उसकी वैल्यू बनेगी। बल्कि निवेशित धन को समय देना भी जरूरी है। सिप में लंबी अवधि का समय दिया जाए तो रिटर्न की वैल्यू भी उतनी ही बढ़ेगी। छोटी अवधि की सिप से ज्यादा रिटर्न की उम्मीद ठीक नहीं है। इस बात का ध्यान रखें, अगर पॉजिटिव रिटर्न मिलने पर सिप से बार-बार पैसे निकालते हैं तो ये आदत नुकसान करवा सकती है।
बाजार में बड़ी गिरावट के वक्त सिप बंद कर देना चाहिए?
कई निवेशक गिरते शेयर बाजार में डर के कारण एसआईपी को बंद कर देते हैं और जब बाजार उठ जाता है तो लालच के कारण निवेश करने का फैसला कर लेते हैं। ये भी जान लें कि बाजार में गिरावट के वक्त सिप से निवेश बंद करने से नुकसान हो सकता है। ऐसा करना निवेशकों की बड़ी गलती साबित हो सकती है। असल में निवेशकों के के इसके विपरीत रणनीति अपनाना चाहिए। जब बाजार में उछाल आए तो उस वक्त कुछ मुनाफा निकाल सकते हैं। अगर बाजार में गिरावट हो तो निवेश कर देना चाहिए। अगर कम एनएवी में ज्यादा यूनिट्स खरीदेंगे तो आने वाले वक्त में उम्मीद से ज्यादा रिटर्न कमा सकते हैं।
ग्रोथ के बजाय डिविडेंड विकल्प को चुनना सही या गलत
सिप में डिविडेंड और ग्रोथ को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि कम्पाउंडिंग कैसे काम करता है। कम्पाउंडिंग ब्याज की ऐसी चेन है जो लगातार बढ़ती जाती है। समान अवधि के साधारण ब्याज के मुकाबले कम्पाउंडिंग की वैल्यू ज्यादा होती है। उदाहरण के तौर पर, अगर एक लाख रुपये का निवेश किया जाए तो 15 प्रतिशत के कम्पाउंडिंग ब्याज की दर से 5 साल में निवेश दोगुना होकर 2 लाख हो जाता है। कम्पाउंड की इस दर को फिक्स कर दिया जाए तो 2 लाख रुपये अगले 5 साल बाद 4 लाख हो जाएंगे, 4 लाख अगले 5 साल बाद 8 लाख रुपये हो जाएंगे।
इस तरह 1 लाख रुपये कुल 15 साल में 8 लाख रुपये हो जाएंगे।
जब म्यूचुअल फंड की किसी स्किम में निवेश करते हैं तो डिविडेंड और ग्रोथ में से किसी एक को चुनना होता है। डिविडेंड में फंड की कम्पाउंडिंग का नकारात्मक असर पड़ता है। इस विकल्प में समय-समय पर डिविडेंड यानी लाभांश दिया जाता है। अगर ग्रोथ विकल्प का चुनाव करते हैं तब कोई लाभांश नहीं मिलता है। जिसके बाद निवेश पर कम्पाउंडिंग का पूरा फायदा मिलता है।
इसमें एक फायदा यह है कि अगर आपने डिविडेंड विकल्प चुन रखा है तो उसे बदल कर ग्रोथ कर सकते हैं। इस तरह निवेश से अच्छे रिटर्न मिल सकते हैं।
सिप रोकने का फैसला
एसआईपी में अगर संग्रह बढ़ रहा है, लेकिन इसकी रफ्तार धीमी है, तब इस स्थिति में सिप को रोके नहीं। कुछ निवेशक सोचते हैं कि सिप की रफ्तार धीमी है तो आगे नुकसान हो सकता है और यह बढ़ता जाएगा, लेकिन यह सच नहीं है।
जैसे बाजार में उछाल आने पर सिप की संख्या बढ़ाना अच्छा नहीं है, ठीक वैसे ही गिरावट में सिप की संख्या को घटा देना भी ठीक नहीं है।
जिन निवेशकों ने लंबी अवधि को ध्यान में रखकर निवेश किया है, उन्हें सिप जारी रखना चाहिए। सिप का पूरा फायदा लेने के लिए गिरावट के दौरान निवेश करना चाहिए। निवेशकों को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि सिप के जरिये 10 साल तक भी निवेश करते रहने पर जरूरी नहीं कि रिटर्न अच्छा मिले, इसके लिए सही रणनीति बनाना जरूरी है।
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